*पानी को कितना भी गर्म कर लें*
*पर वह थोड़ी देर बाद* *अपने मूल स्वभाव में* *आकर शीतल हो जाता हैं* ।
*इसी प्रकार हम कितने भी क्रोध में, भय में,अशांति में रह लें,*
*थोड़ी देर बाद-बोध में,* *निर्भयता में और प्रसन्नता में*
*हमें आना ही होगा क्योंकि यही हमारा मूल स्वभाव है।*
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